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#हिंदीदिवसपरबिशेष

 जब भी बात देश की उठती है तो हम सब एक ही बात दोहराते हैं, “हिंदी हैं हम, वतन है हिंदोस्तां हमारा“। यह पंक्ति हम हिंदुस्तानियों के लिए अपने आप में एक विशेष महत्व रखती है। हिंदी अपने देश हिंदुस्तान की पहचान है। यह देश की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है इसीलिए हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। हर साल हम 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं। क्योंकि इसी दिन भारत की संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी भाषा को भारतीय गणराज्य की राजभाषा घोषित किया था। हिंदी के प्रचार और प्रसार के लिए तत्कालीन भारतीय सरकार ने 14 सितंबर 1949 से प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने का अनुरोध किया था। तब से लेकर आज तक हम प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को Hindi Diwas के रूप में मानते हैं। इस दिन सरकारी दफ्तरों में, स्कूलों में, कॉलेजों में हिंदी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है तथा कहीं-कहीं सप्ताह भर तक हिंदी सप्ताह का आयोजन भी किया जाता है। ऐसे लोगो के लिए हम अपना यह आर्टिकल ले कर आये हैं जो हिंदी दिवस पर कुछ प्रस्तुत करना चाहते हैं। हिन्दी दिवस (Hindi Diwas) संविधान द्वारा हि

लाखा मंडल उत्तराखंड

  लाखामंडल मंदिर का एक ऐतिहासिक महत्व है और यह माना जाता है कि मंदिर का निर्माण युधिष्ठिर द्वारा किया गया था । यह वह जगह है , जहां दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए “लक्षग्राह” बनाया था , लेकिन किस्मत से पांडवों को शक्ति से देवता के द्वारा बचाया गया था । इसलिए भगवान शिव और देवी पार्वती की पवित्र शक्ति का जश्न मनाने के लिए यहां एक शक्ति मंदिर का निर्माण किया गया था यमुना नदी के उत्तरी छोर पर स्थित देहरादून जिले के जौनसार-बावर का लाखामंडल गांव एतिहासिक ही नहीं पौराणिक दृष्टि से भी विशेष महत्व रखता है। समुद्रतल से 1372 मीटर की ऊंचाई पर स्थित लाखामंडल गांव देहरादून से 128 किमी, चकराता से 60 किमी और पहाड़ों की रानी मसूरी से 75 किमी की दूरी पर है। लाखामंडल की प्राचीनता को कौरव-पांडवों से जोड़कर देखा जाता है। मान्यता है कि कौरवों ने पांडवों व उनकी माता कुंती को जीवित जलाने के लिए ही यहां लाक्षागृह (लाख का घर) का निर्माण कराया था। बताते हैं कि लाखामंडल में वह एतिहासिक गुफा आज भी मौजूद है, जिससे होकर पांडव सकुशल बाहर निकल आए थे। इसके बाद पांडवों ने 'चक्रनगरी' में एक माह बिताया, जिसे