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टिहरी गढ़वाल का अशोक राजा कीर्ति शाह

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  टिहरी राजवंश में कीर्ति शाह सबसे महत्वपूर्ण राजाओं में थे. कीर्ति शाह ने राज्य  को आधुनिक स्वरूप प्रदान किया. कीर्ति शाह को टिहरी का अशोक भी कहा गया. टिहरी रियासत के राजा कीर्ति शाह का शासन लोक हितों को प्राथमिकता देने वाला एसा शासन था. (King Kirti Shah Tehri Dynasty) 1892 में आगरा में उत्तर भारत के देशी रियासतों के एक सम्मेलन में गवर्नर लॉर्ड लैंसडाउन ने अन्य रियासतों के शासकों से कीर्ति शाह को आर्दश बनाने की बात करते हुये कहा- यह बड़े सौभाग्य की बात होगी कि भारत के नरेश गढ़वाल के राजा महाराजा कीर्ति शाह को अपना आदर्श बनाएं, उनके सदृश्य योग्यता प्राप्त करने का कार्य करें. इस कथन का अभिप्राय यह है कि 1892 में टिहरी रियासत लोक प्रशासन के सामान्य उद्देश्य को पूरा कर रही थी. ब्रिटिश शासन का यह आश्चर्यजनक विरोधाभास दिखाई देता है कि जहां वह एक ओर भारत के प्राकृतिक संसाधनों का व्यवसायिक दोहन करना चाहते थे वहीं वह जानते थे कि इस दोहन प्रक्रिया को लंबा चलाने के लिए उन्हें लोक प्रशासन, लोक हितैषी बनाए रखना होगा ताकि विरोध के स्वरों को रोका जा सके. इसी उद्देश्य से ब्रिटिश शासन ने जगह-जगह लोक प

History of garhwal surnames Brahmin

 History of some Garhwali Brahmin Surnames मूल रूप से गढ़वाल में ब्राह्मण जातियां तीन हिस्सो में बांटी गई है :- 1 सरोला  2 गंगाड़ी  3 नाना  सरला और गंगाड़ी 8 वीं और 9वीं शताब्दी के दौरान मैदानी भाग से उत्तराखंड आए थे। पवार शासक के राजपुरोहित के रूप में सरोला आये थे।  गढ़वाल में आने के बाद सरोला और गंगाड़ी लोगो ने नाना गोत्र के ब्राह्मणों से शादी की। सरोला ब्राह्मण के द्वारा बनाया गया भोजन सब लोग खा लेते है परंतु गंगाड़ी जाती का अधिकार केवल अपने सगे-सम्बन्धियो तक ही सिमित है।    1. नौटियाल - 700 साल पहले टिहेरी से आकर तली चांदपुर में नौटी गाव में आकर बस गए !    आप के आदि पुरष है नीलकंठ और देविदया, जो गौर ब्राहमण है।। नौटियाल चांदपुर गढ़ी के राजा कनकपाल के साथ सम्वत 945 मै धर मालवा से आकर यहाँ बसी, इनके बसने के स्थान का नाम गोदी था जो बाद मैं नौटी नाम मैं परिवर्तित हो गया और यही से ये जाती नौटियाल नाम से प्रसिद हुई। 2. डोभाल -  गढ़वाली ब्राह्मणों की प्रमुख शाखा गंगाडी ब्राह्मणों मैं डोभाल जाती सम्वत 945 मै संतोली कर्नाटक से आई मूलतः कान्यकुब्ज ब्रह्मण जाती थी।   मूल पुरुष कर्णजीत डोभा गाँव म

जीवन का कठोर सत्य

 जीवन का कठोर सत्य भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठ कर कैलाश पर्वत पर गए। द्वार पर गरुड़ को छोड़ कर खुद शिव से मिलने अंदर चले गए। तब कैलाश की अपूर्व प्राकृतिक शोभा को देख कर गरुड़ मंत्रमुग्ध थे कि तभी उनकी नजर एक खूबसूरत छोटी सी चिड़िया पर पड़ी। चिड़िया कुछ इतनी सुंदर थी कि गरुड़ के सारे विचार उसकी तरफ आकर्षित होने लगे। उसी समय कैलाश पर यम देव पधारे और अंदर जाने से पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की द्रष्टि से देखा। गरुड़ समझ गए उस चिड़िया का अंत निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने साथ यमलोक ले जाएँगे। गरूड़ को दया आ गई। इतनी छोटी और सुंदर चिड़िया को मरता हुआ नहीं देख सकते थे। उसे अपने पंजों में दबाया और कैलाश से हजारो कोश दूर एक जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया, और खुद बापिस कैलाश पर आ गया। आखिर जब यम बाहर आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया कि उन्होंने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्य भरी नजर से क्यों देखा था। यम देव बोले "गरुड़ जब मैंने उस चिड़िया को देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि वो चिड़िया कुछ ही पल बाद यहाँ से हजारों कोस दूर एक नाग द्वारा खा ली जाएगी। मैं सोच रहा था कि वो इतनी जलदी इतनी दू