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द्रोणागिरी गाँव

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यह स्थान है उत्तराखंड स्थित द्रोणागिरि गांव। द्रोणागिरी गांव उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली के जोशीमठ विकास खण्ड में जोशीमठ नीति मार्ग पर है. यह गांव लगभग १४००० फुट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां के लोगों का मानना है कि हनुमानजी जिस पर्वत को संजीवनी बूटी के लिए उठाकर ले गए थे, वह यहीं स्थित था. चूंकि द्रोणागिरि के लोग उस पर्वत की पूजा करते थे, इसलिए वह हनुमान जी द्वारा पर्वत उठा ले जाने से नाराज हो गए. यही कारण है कि आज भी यहां हनुमान जी की पूजा नहीं होती. यहां तक कि इस गांव में"लाल रंग" का "झंडा"लगाने पर पाबंदी है. द्रोणागिरि गांव के निवासियों के अनुसार जब हनुमान जी बूटी लेने के लिए इस गांव में पहुंचे तो वे भ्रम में पड़ गए. उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था कि किस पर्वत पर संजीवनी बूटी हो सकती है. तब गांव में उन्हें एक वृद्ध महिला दिखाई दी. उन्होंने पूछा कि संजीवनी बूटी किस पर्वत पर होगी? वृद्धा ने द्रोणागिरि पर्वत की तरफ इशारा किया. हनुमान उड़कर पर्वत पर गए पर बूटी कहां होगी यह पता न कर सके. वे फिर गांव में उतरे और वृद्धा से बूटीवाली जगह पूछने लगे. जब वृद्धा ने बूटीवाला पर्व

हनुमान चट्टी

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हनुमान चट्टी एक मंदिर है, जो भगवान हनुमान को समर्पित है। यह ऋषिकेश, उत्तराखंड से लगभग 286 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर के जोशीमट से 34 किलोमीटर की दूरी पर हैं और बद्रीनाथ मंदिर लगभग 12 कि.मी. तथा दोनों के बीच में स्थित है। गढ़वाल हिमालय में हनुमान चट्टी के एक ही नाम से दो स्थान हैं। एक मंदिर यमुनोत्री धाम पर स्थित है, जबकि दूसरा बद्रीनाथ मंदिर तक है। हालांकि मंदिर कद में छोटा दिखता है लेकिन यह बहुत सुंदर है और इसके पीछे एक प्रभावशाली इतिहास है। किंवदंती यह है कि यह इस स्थान पर था कि भगवान हनुमान ने पांडव भाई भीम को गले लगाया था और उनके अहंकार को कुचल दिया था। मंदिर के पीछे की कहानी भीम अपनी ताकत और शक्ति के लिए प्रसिद्ध पांडव भाइयों में से एक थे। एक दिन जब भीम इस रास्ते से गुजर रहे थे, तो उन्हें रास्ते में एक बुढें बंदर का सामना करना पड़ा। भीम के मार्ग में बाधा उत्पन्न करने के कारण उनकी पूंछ फैल हुई थी। भीम ने पूंछ हटाने के लिए बुढें बंदर से कई बार अनुरोध किया, लेकिन बंदर ने यह कहते हुए मना कर दिया कि वह बहुत बूढ़ा है और वह बहुत थका हुआ है। भीम इस कारण क्रोधित हो गए और म

रति.....

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रत्ती """"" यह शब्द लगभग हर जगह सुनने को मिलता है। जैसे - 'रत्ती भर भी परवाह नहीं, रत्ती भर भी शर्म नहीं', रत्ती भर भी अक्ल नहीं... आपने भी इस शब्द को बोला होगा, बहुत लोगों से सुना भी होगा। आज जानते हैं 'रत्ती' की वास्तविकता, यह आम बोलचाल में आया कैसे. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रत्ती एक प्रकार का पौधा होता है, जो प्रायः पहाड़ों पर पाया जाता है। इसके मटर जैसी फली में लाल-काले रंग के दाने (बीज) होते हैं, जिन्हें रत्ती कहा जाता है। प्राचीन काल में जब मापने का कोई सही पैमाना नहीं था तब सोना, जेवरात का वजन मापने के लिए इसी रत्ती के दाने का इस्तेमाल किया जाता था. सबसे हैरानी की बात तो यह है कि इस फली की आयु कितनी भी क्यों न हो, लेकिन इसके अंदर स्थापित बीजों का वजन एक समान ही 121.5 मिलीग्राम (एक ग्राम का लगभग 8वां भाग) होता है। तात्पर्य यह कि वजन में जरा सा एवं एक समान होने के विशिष्ट गुण की वजह से... कुछ मापने के लिए जैसे रत्ती प्रयोग में लाते हैं। उसी तरह किसी के जरा सा गुण, स्वभाव, कर्म मापने का एक स्थापित पैमाना बन गया यह "रत्ती" शब्द

धारी देवी

 जय माँ धारी देवी 🌹 कहते हैं कि धारी देवी सात भाइयों की इकलौती बहन थी, बचपन में ही माता पिता के देहांत के बाद सातों भाइयों ने धारी देवी की देखरेख की वह भी अपने भाइयों की खूब सेवा करती थी तभी भाइयों को पता चला कि उनकी बहन के ग्रह भाइयों के खराब हैं तो ओ बहन से नफ़रत करने लगे,जब वह कन्या तेरह साल की थी तो उसके पांच भाइयों की मृत्यु हो गई बचे हुए दो भाइयों को लगा कि इसी बहन के ग्रहों के कारण भाइयों की मृत्यु हो गई है, फिर उन्होंने रात्रि के समय में कन्या की हत्या कर दी और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया सिर और धड़ को गंगा में बहा दिया, कन्या का सिर बहते हुए दूर धारी गांव में पहुंच गया, प्रातः काल में नदी किनारे एक व्यक्ति कपड़े धो रहा था उसे लगा कि एक कन्या डूब रही है बचाने का प्रयास किया परंतु पानी बहुत था इसलिए पीछे हटा तभी उस सिर में से आवाज आई कि डर मत मुझे बचा तू जहां जहां पैर रखेगा वहां पर सीढ़ियां बनती जायेंगी,उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया और सीढ़ियां बनती गई, जैसे ही उसने कन्या समझकर सिर को उठाया तो कटा सिर देखकर घबरा गया फिर सिर पर से आवाज आई कि मैं देवी रूप में हूं तू मुझे किसी पवित्र

पंच प्रयाग

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उत्तराखंड देवभूमि है। यहां पंच प्रयाग में दर्शन से जीवन में उल्लास आता है। ये प्रमुख पंच प्रयाग हैं- विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग और देवप्रयाग। यह पंच प्रयाग उत्तराखंड की मुख्य नदियों के संगम पर हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नदियों का संगम बहुत ही पवित्र माना जाता है। इन पंच प्रयागों का पवित्र जल एक साथ अलकनंदा और भगीरथी का जल भगवान श्रीराम की तपस्थली देवप्रयाग में मिलता है और यहीं से भगीरथी और अलकनंदा का संगम गंगा के रूप में अवतरित होता है   उत्तराखंड के हिमालय के क्षेत्र के पंच प्रयाग यानी संगम को सबसे पवित्र माना गया है, क्योंकि गंगा, यमुना सरस्वती और उनकी सहायक नदियों का उत्तराखंड देवभूमि उद्गम स्थल है। जिन जगहों पर इनका संगम होता है उन्हें प्रमुख तीर्थ माना जाता है। जिनमें स्नान का विशेष महत्व है और इन्हीं संगम स्थलों पर पूर्वजों के मोक्ष के लिए श्राद्ध तर्पण भी किया जाता है। 🚩विष्णुप्रयाग बद्रीनाथ से होकर निकलने वाली विष्णु प्रिया अलकनंदा नदी और धौली गंगा नदी का जोशीमठ के नजदीक जिस स्थान पर मिलन ह

मेरा अनुरोध है आप सभी से इस पोस्ट को एक बार जरूर पढ़ें

मेरी यह पोस्ट उन बहन बेटियों के लिए है जो अपने गुरुर में अपने अहंकार में अपने पति का घर छोड़ देती हैं और अपने पतियों को कम कमाई के ताने देती है उन हर बहन बेटियों से मेरा अनुरोध है जिनकी शादी हो गई और जिनकी शादी होने वाली है वह इस पोस्ट को एक बार जरूर पढ़ें बेटियों आप जिस घर में शादी करके जाते हो जरूरी नहीं कि वह आपके घर जैसा ही हो हर घर में हर पति की इतनी कमाई नहीं रहती जितनी आपने आपके घर में पापा और भाई की देखी है आपको जो सुख सुविधा आपके मम्मी पापा के घर मिली यह जरूरी नहीं कि आप को पति के घर में भी मिले आज मैं सुबह उठा था ही और पास वाले चौहान जी दिख गए मैं बोला चौहान जी नमस्कार चौहान जी बोले कुंवर जी नमस्कार मैं फिर बोला चौहान जी आप कुछ उदास दिख रहे हो क्या बात है शर्मा जी उदास होकर बोले कि मेरी बेटी घर पर आकर बैठ गई मैं बोला चौहान जी बेटी तो "संग्रान्द " पर आई हुई थी ना तो इसमें कौन सी बड़ी बात है चौहान बोले नहीं कुंवर जी बेटी हमेशा के लिए अपने पति को छोड़ कर आ गई और बोलती है मुझे तलाक दिलवाओ पापा मैंने फिर चौहान जी से पूछा आपने आपकी बेटी से पूछा पति के यहां क्या समस्या है

रोचक जानकारी

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☺ कर लो दर्शन ☺ बाबा अमरनाथ से जुड़ी अमर कबूतर की कथा पुराणों में वर्णित है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा, आप अजर-अमर हैं और मुझे हर जन्म के बाद नए स्वरूप में आकर फिर से वर्षों की कठोर तपस्या के बाद आपको प्राप्त करना होता है। मेरी इतनी कठोर परीक्षा क्यों? और आपके कंठ में पड़ी यह नरमुण्ड माला तथा आपके अमर होने का रहस्य क्या है? भोलेनाथ ने बताया कि हे शक्ति ये नरमुंड तुम्हारे ही हैं !!! भगवान शंकर ने माता पार्वती से एकांत और गुप्त स्थान पर अमर कथा सुनने को कहा जिससे कि अमर कथा कोई अन्य जीव न सुन पाए। क्योंकि जो कोई भी इस अमर कथा को सुन लेता है, वह अमर हो जाता। पुराणों के मुताबिक, शिव ने पार्वती को इसी परम पावन अमरनाथ की गुफा में अपनी साधना की अमर कथा सुनाई थी, जिसे हम अमरत्व कहते हैं। कहते हैं भगवान भोलेनाथ ने अपनी सवारी नंदी को पहलगाम पर छोड़ दिया, जटाओं से चंद्रमा को चंदनवाड़ी में अलग कर दिया और गंगाजी को पंचतरणी में तथा कंठाभूषण सर्पों को शेषनाग पर छोड़ दिया। इस प्रकार इस पड़ाव का नाम शेषनाग पड़ा। अगला पड़ाव गणेश पड़ता है, इस स्थान पर बाबा ने अपने पुत्र गणेश को भी छोड़ द