राजुला मालुशाई

 *राजुला- मालुशाही*

अपने उत्तराखंड की एक

प्रेमगाथा प्रसिद्ध है, यह करीब एक हजार साल पुरानी है।

कत्यूरी राज का अन्तिम दौर चल रहा था। राजधानी कार्तिकेय पुर (बागेश्वर) से द्वारहाट (बैराठ) आ चुकी थी। एक रात को कत्यूरी वंश के राजा मालूशाही के स्वप्न में जोहार के सुनपति शौका की बेटी राजुला आ गई। मालूशाही की सात रानियाँ पहले से थीँ, लेकिन राजुला का अप्रतिम सौन्दर्य देखकर वह राजुला पर मोहित हो गया। वह राजुला को प्राप्त करने के लिए मल्ला जोहार के दुर्गम रास्ते पर दल बल के साथ चल पड़ा। कहा जाता है कि मालूशाही भी राजुला के स्वप्न में आया और वह भी उस से प्रेम करने लगी, उसने मन ही मन मालुशाही को अपना मान लिया।

राजुला के पिता ने उसकी 

उसकी शादी हूणदेश (तिब्बत) के एक व्यापारी से तय कर दी। मालूशाही अपने लाव-लश्कर के साथ जोगी के वेश में शौक्आन

पहुँचा,मालू की यह यात्रा बहुत कठिन थी। मालू किसी तरह राजुला से मिला और उसके मन की बात पूछी, राजुला ने अपने मन की बात बता दी, तब मालुशाही ने राजुला के पिता से उसका हाथ मांगा पर उसने मना कर दिया।एक षडयंत्र कर मालूशाही को ज़हर खिला दिया गया ।

सिदुवा और विदुवा नाम के दो योगियोँ ने मालूशाही को बचा लिया, फिर मालुशाही ने राजुला के लिए युद्ध किया और युद्ध जीतकर, राजुला को अपनी पत्नी बनाकर बैराठ ले आया।

इस तरह राजुला और मालुशाही की प्रेमगाथा हमेशा के लिए अमर हो गयी।

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