कौआ
भारतीय कौआ
यह एक गलत धारणा फैला रखी है कि कोवौ की आवाज कर्कश होती है। प्रकृति से प्रेम हो और नज़रीया सही हो तो इनका स्वर बहुत प्यारा लगता है।
इनके स्वर से अल्फा व विटा संयुक्त ध्वनी तरंगें निकलती हैं जिन्हें लगातार सुनने से हमारी पिनियल ग्रेन्ड (पियुष ग्रंथी) कुछ हद तक सक्रिय होती है ।
और दुसरी बात पीपल या बड़ के बीज नही होते हैं ।
प्रकृति/कुदरत ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है।
यह दोनों वृक्षों के टेंटे कव्वे खाते हैं और उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसिंग होती है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं।
उसके पश्चात कौवे जहां-जहां बीट करते हैं वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं।
पीपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो round-the-clock ऑक्सीजन (O2) छोड़ता है और बड़ के औषधि गुण अपरम्पार है।
अगर यह दोनों वृक्षों को उगाना है तो बिना कौवे की मदद से संभव नहीं है इसलिए कव्वे को बचाना पड़ेगा।
ये संदेश-वाहक और एक कुशल सफाईकर्मी भी होते हैं जो फ़्री में हमारी सफाई करते हैं और हमारे आस-पास के वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं ।
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