उत्तराखंड राज्य का जौनसार बाबर

 राज्य का दूसरा बड़ा जनजातीय समुदाय        -      जौनसारी


निवास स्थल : लघु हिमालय के उत्तरी पश्चिमी भाग का बावर क्षेत्र।  इस क्षेत्र के अंतर्गत देहरादून का चकराता,कालसी,त्यूनी,लाखामंडल आदि क्षेत्र , टिहरी का जौनपुर क्षेत्र तथा उत्तरकाशी का परग नेकाना क्षेत्र आते हैं।

जौनसारी जनजाति की सर्वाधिक आबादी पाई जाती है  -  देहरादून के जौनसार बावर क्षेत्र में देहरादून के उत्तर पश्चिम में स्थित चकराता ,कालसी तथा त्यूनी तहसील के क्षेत्रों को संयुक्त रूप से कहा जाता है -      जौनसार - बावर जौनसार बावर क्षेत्र में कुल 39 खत  व 358 राजस्व गांव है।

भाषा :जौनसार बावर क्षेत्र की मुख्य भाषा जौनसारी है। 

बाबर के क्षेत्र में बावरी भाषा , देवघार में देवघारी व हिमाचली भाषा भी बोली जाती है।  लेकिन पठन-पाठन हिंदी में ही किया जाता है।


वेशभूषा : पुरुष  महिला

पुरुषों द्वारा सर्दियों में ऊनी कोट व ऊनी पजामा (झगोली )तथा ऊनी टोपी को (डिगुबा ) पहनते हैं|

गर्मियों में पुरुष चूड़ीदार पजामा ,बंद गले का कोट व सूती टोपी पहनते हैं|  सर्दियों में स्त्रियों ऊनी कुर्ते, ऊनी घाघरा व ढाट (एक बड़ा रुमाल) पहनती हैं।

गर्मियों में स्त्रियां सूती घाघरा व कुर्ती कमीज कमी (झगा)पहनती है। कुर्ते के बाहर चोली (चोल्टी) पहनती हैं

  

आवास

जौनसारी लोग अपना घर लकड़ी और पत्थर से बनाते हैं जो दो या तीन या चार मंजिलों का होता है। घर का मुख्य द्वार लकड़ी का बना हुआ होता है जिसमें विभिन्न प्रकार की सजावट की जाती है।


सामाजिक संरचना

पारिवारिक संरचना इसमें  पितृसत्तात्मक प्रकार की संयुक्त परिवार प्रथा पाई जाती है। विवाह =इनमें बहुपति विवाह का प्रचलन था। लेकिन अब यह प्रथा लुप्त हो रही है। बेवीकी" ,"बोईदोदीकी" और "बाजदिया" आदि प्रकार के विवाह प्रचलित हैं। इन तीनों प्रकार मे से बाजदिया सबसे शान- शौकत प्रकार का विवाह है, जिसमें कन्या पक्ष से वर के घर बाजे- गाजे के साथ बारात जाती है। 

बेवाकी की सबसे साधारण विवाह है। विवाह विच्छेद के लिए पति - पत्नी दोनों को ही समान रूप से अधिकार प्राप्त है। पितृगृह में लड़की (ध्यंति) को घर एवं कृषि कार्यों का प्रशिक्षण दिया जाता है। विवाह उपरांत लड़की (रयांति) का निवास अपने प का घर होता है। रिश्ते संबंधों में कन्या पक्ष को उच्च माना जाता है , समाज में महिलाओं को सम्मानीय स्थिति प्राप्त है ।

धर्म  =जौनसारी हिंदू धर्म को मानते हैं।

महासू (बासक,पिबासक,भूथिया या बौठा,चलता या चलदा व देवलाडी) , पांडवों , भारदाज आदि देवी देवताओं को अपना कुलदेव एवं संरक्षक मानते हैं।

जौनसारी की मुख्य देवता  - महासू महाशिव. 


सांस्कृतिक गतिविधियां =जौनसारी अपने को मानते हैं    - पांडवों का वंशज इनमें प्रमुख देवता पांचो पांडव  व पंचमाता कुंती इनकी देवी है। जौनसारीओ का मुख्य देवालय जहां महासू अपने चारों वीर भाइयों व माता देवलाडी के साथ विराजते हैं    -   हनौल (तमसा तट पर) ,इसके अलावा लाखामंडल ,थैना , कालासी में भी इनके मंदिर हैं।

 बिस्सू (वैशाखी) ,पंचाई या पांचो (दशहरा) , दियाई (दिवाली) , माघत्योहार , जागडा , अठोई (जन्माष्टमी) इनके विशिष्ट त्यौहार उत्सव व मेले हैं।


"दियाई (दिवाली )" इनका विशेष पर्व है ,जो राष्ट्रीय दिवाली के 1 माह बाद मनाया जाता है| इसमें दिए जलाने की बजाय भिमल लकड़ी का हौला जलाते हैं और पांडवों एवं महासू के गीत गाते हैं| इस हौला को किसी खेत में ले जाकर भयलो खेलते हैं। दूसरे दिन  पुरुष पत्तेबाजी नृत्य करते हैं।

"पंचाई या दशहरा" यहां की भाषा में  "पांडव का त्यौहार कहते "  हैं| पांडव अश्विन शुक्ल षष्ठी या सप्तमी तिथि को होती है ,उस दिन कहीं कहीं मेला भी लगता है।

विजयदशमी को स्थानीय भाषा में " पांयता " कहा जाता है।


"जागडा ", महासू देवता का त्यौहार है ,जो भादो के महीने में मनाया जाता है | उस दिन महासू देवता को मंदिर से ले जाकर टोंस नदी में स्नान कराया जाता है।


"माघ त्यौहार"  -  11 या 12 जनवरी से प्रारंभ होकर पूरे माघ भर चलता है| इसमें लोग भेड़ बकरा काटते हैं और एक दूसरे को भोज देते हैं। पूरे महीने लोग रात को बारी-बारी से सबके घर जाकर नाचते गाते हैं।

अप्रैल में "वैशाखी या बिस्सू  मेला"   वैशाखी से 4 दिन पर्यंत तक मनाया जाता है| इन 4 दिनों में चौलीथात ,ठाणा  डांडा , चौरानी , नागथात ,लुहनडांडा ,घिरटी व नगाय डांडे आदि स्थानों पर मेले लगते हैं। इसमें चावल से बने पापड़ जिन्हें स्थानीय भाषा में "लाडू " एवं "शाकुली" कहा जाता है ,इन मेलो में मुख्य पकवान है|

यह जौनसार बाबर का सबसे बड़ा मेला माना जाता है, इन मेंलो को "गनयात" भी कहते हैं|

"दशहरे" को यह पांच रूप में मनाते हैं | इस अवसर पर मेले अश्विनी शुक्ला अश्विन शुक्ल षष्ठी या सप्तमी तिथि को मेले लगते हैं।


"वीर केसरी मेला" 3 मई को चौलीथात में "अमर शहीद केसरी चंद" के बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है


इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में कुछ विशेष प्रकार के मेले (मौण) भी लगते हैं जैसे मछमौण व जतरियाडो मौण |

इसमें किसी छोटी नदी में तिमुर का पाउडर डालकर मछलियों को बेहोश कर देते हैं और सामूहिक रूप से मछलियों को पकाते हैं| इसमें केवल पुरुष ही भाग लेते हैं।


हारूल (परात नृत्य) , रासो , घुमसू , झेला , छोड़ो , धीई , जंगबाजी, सराई , हृदया ,सामूहिक मंडवणा , तांदी , मरोज ,ठुमकिया , रास रासो , पांडववाला , पौणई , रैणारात ,पत्तेबाजी आदि इनके नृत्य हैं|


तलवार , फरसा ,कटार आदि इनके प्रमुख हथियार हैं।


हारूल, मांगल ,छोड़ें , शिलोंगु , केदारछाया ,गोडवड़ा ,रणारात, विरासु आदि इनके प्रमुख लोक गीत हैं।


आर्थिक गतिविधियां :


कृषि एवं पशुपालन इनके मुख्य व्यवसाय हैं।

 खसास  (ब्राह्मण व राजपूत ) जौनसारी काफी संपन्न होते हैं यह कृषि भूमि के मालिक होते हैं|

कारीगर वर्ग के जौनसारी अपने कारीगरी और मजदूरी से जीविका चलाते हैं और प्राय आत्मनिर्भर होते हैं|

तीसरा वर्ग (हरिजन खसास) आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से पहले काफी पिछड़ा हुआ था किंतु सरकारी व स्वयं के प्रयासों से इनकी स्थिति में निरंतर सुधार हो रहा है

हरिजन खसास में कोल्टा जनजाति के सामाजिक और आर्थिक दशा बहुत दयनीय है|


राजनीतिक संस्था


यहां प्रत्येक गांव में गांव पंचायत की जगह "खुमरी" नामक समिति होती है।

गांव के प्रत्येक परिवार का एक सदस्य खुमरी का सदस्य होता है|

खुमरी के मुखिया को "ग्राम सयाणा" कहा जाता है,व्यक्तिगत मामलों का निपटारा खुमरी द्वारा किया जाता है।

खुमरी से ऊपर खत स्तर पर प्रत्येक गांव में एक-एक "खत खुमरी" नामक समिति हुआ करती थी।

इनका मुखिया "खत सयाणा" कहलाता था|

खत खुमरी द्वारा दो या अधिक गांव के बीच के मामलों मालगुजारी या दीवानी मामलों का निपटारा किया जाता था।


जौनसार क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति

वीर केसरी चंद्र

जन्म 1 नवंबर 1920 को   "चकराता" के पास "क्यावा गांव"में यह सेना में थे लेकिन बाद में बॉस की आजाद हिंद फौज में  भर्ती हो गए| 3 मई 1945 को फांसी की सजा दी गई इनके बलिदान दिवस पर 3 मई को चौलिथात में मेला लगता है|


केदार सिंह

बिसोई ग्राम के निवासी केदार सिंह जौनसार के प्रथम समाजसेवी हैं। इन्हें जौनसार बावर में समाज सेवा एवं जन जागृति का अग्रदूत माना जाता है


पंडित शिवरार 

कविता के क्षेत्र में प्रतिष्ठा रखने वाले आशुकवि पंडित शिवराम जौनसार के प्रथम कवि हैं।

इन की प्रसिद्ध रचना  - वीर केसरी 


भाव सिंह चौहान

प्रथम जौनसारी व्यक्ति जिन्होंने मसूरी एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की तथा अंतरराष्ट्रीय खेल जगत में विशिष्ट उपलब्धियां हासिल कर जौनसार बाबर का नाम रोशन किया|

यह फादर ऑफ जौनसार बावर सम्मान से सम्मानित होने वाले जौनसार क्षेत्र के प्रथम व्यक्ति हैं।


गुलाब सिंह


राजनीति के क्षेत्र में अजय रहने वाले श्री गुलाब सिंह उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके हैं|

 इन्हें जौनसार में राजनीतिक जागरूकता का जनक माना जाता है इस क्षेत्र से मंत्री बनने वाले के प्रथम व्यक्ति हैं।


रतन सिंह जौनसारी


कविता के माध्यम से जौनसार को उजागर करने वाले रत्न सिंह जौनसारी इस क्षेत्र के आधुनिक कवि हैं|


देविका चौहान

समाज सेवा से जुड़ी देविका चौहान ने महिला उत्थान में उल्लेखनीय कार्य किए हैं।

कृपाराम जोशी प्रमुख शिक्षाविद एवं समाजसेवी श्री जोशी ने जौनसार बावर में समाज सेवा तथा विकास के लिए एक संगठन की स्थापना की है।


नंद लाल भारती जौनसार के संगीत जनक  - नंदलाल भारती  भारती जौनसार रत्न से सम्मानित हैं| इनका जौनसारी संगीत एवं संस्कृति के विकास में बहुत बड़ा योगदान है।

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