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अक्तूबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Chef ) बावर्ची

 मैं  (chef ) होने के वास्ते आपको बताना चाहूंगा  International Chef Day।।। अंतर्राष्ट्रीय बावर्ची दिवस 2020  नमस्ते दोस्तो आपका स्वागत है  आज हम आपको इंटरनेशनल शेफ डे के बारे में बताने वाला  हुँ इस साल इंटरनेशनल सेफ डे  20 अक्टूबर को आया है। शेफ की अहमियत हमारी जिंदगी में बहुत बड़ी होती है क्योंकि बिना शेफ के हमे अच्छा खाना खाने को नही मिलता है। आपको हम यह भी बताना चाहते हैं कि शेफ से बढ़िया खाना आज के जमाने मे कोई नही बना सकता है। आज का मेरा  यह आर्टीकल विशेष तौर पर इसलिए बनाया गया है कि इंटरनेशल शेफ डे क्यों मनाया जाता है और आप सभी इस दिन को कैसे मना सकते हैं। आपको बता दें कि हम पूरे साल में कई बार अलग अलग शेफ के हाथ का बना खाना खाते हैं लेकिन हममें से कुछ ही लोग होते हैं जो कि उनकी हाथो की तारीफ करते हैं। आपको बता दें कि यह दिन ऐसे अच्छे खाना बनाने वालो के नाम दिया जाता है। अगर आपको भी किसी के हाथ का खाना पसंद है तो आप भी उन्हें हैप्पी इंटरनेशनल शेफ डे विश कर सकते है। अच्छा खाना हरकोई नहीं बना पता जो दिल से मेहनत करता है ये कला उसी का नाम  रोसन करती हैं रोजी-रोटी कमाना बिल्कुल भी खेल

वो स्कुल के दिन

 वो सर्दी की गुनगुनी धूप शर्दी  के लाजवाब दिन, सुबह सुबह दाल भात खा कर  स्कूली दिन, नीली कमीज और  भूरी पैंट, वो मटमैला सा गले में टांगने  वाला बस्ता जो "गिला " रेहता  दवात की स्याही से, स्कूल जाना एक कौतिक ही था तब, एक दो रूपये में भरपूर चाय और "बन"   नारंगी टॉफियों  से जेबें भर जाया करती थी ,वो  गुरूजी  का सख्त रूख और बेंत की मार बहुत - बहुत चुभती थी आज न जाने क्यों शकून का अहसास कराती है , हमारा स्कूल बहुत दूर हुआ करता था, लगभग गांव से 10किलोमीटर की दुरी पर सुबह 5 बजे उठना पड़ता था, और मैं सबसे पहले स्कूल जाने के लिए तैयार होता था, बाकी सहपाठी मेरे बाद ही आये करते थे, क्यूंकि मेरा घर गांव से सबसे ऊपर था आना जाना 2, 3 घंटे लग ही जाते थे, कभी कभी हम नागरिक शास्त्र के बिषय का काम नहीं कर पाते थे तो नागरिक शास्त्र बिषय के गुरूजी इतने खतरनाक थे की उनका खौफ के कारण हम कभी कभी रास्ते मैं जंगल पड़ता था वहीँ घूमने चले जाते थे, जंगल होने के कारण वहां "चारा पती"लकड़ियों के लिए महिलाएं आया करती थी, महिलाएं अपने समूह मैं "स्थानीय भाषा मैं, गीत गाया करती थी, और हम ल

बदांणी ताल

__"बदाणीताल  जनपद रुद्रप्रायग के विकासखंड जखोली का गाँव बधाणी एक पर्यटक स्थल ही नहीं धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान है, रुद्रप्रयाग से लगभग 60की. मी. की दूरी पर स्थित है   बधाणी ताल, जो कि बगवान विष्णु के सरोवर के रूप मे प्रसिद्ध है, यहाँ पर श्रद्धालु एवं पर्यटक बड़ी संख्या मै आते है, बैशाखी के पावन पर्व पर हर साल 14 अप्रेल को पर्यटन एवं बैशाखी मेले का आयोजन किया जाता है

गेंठाणा, गांव

रुद्रप्रयाग जिले से 55 किलोमीटर दूर  गेठाणा गाँव हैं  जो  विकास  खण्ड  जखोली के  बाँगर पट्टी  मे है  ।इस  स्थान  पर  सतयुग मे  भागवान विष्णु  मा  लक्ष्मी  के साथ  शेष नाग की  षया पर  विराजमान हुए  थे । तबसे  इस जगह  को  खीर  सागर  के  नाम  से  पुराणो मे  वर्णित  है  । जिसका  उदाहरण आज भी  खीर सागर  की  मछलियो के  कोलाहल से  पता  चलता  है।  जहा  एक ओर  यह स्थान  पर्यटको  को आकर्षित कर्ता  है । वही  इस  स्थान का  अपना  धार्मिक  महत्व भी  है  । इस स्थान पर  स्थित  भागवान विष्णु  का  मन्दिर हैं   जिसमे  सुबह श्याम  भागवान विष्णु अराधना  की  जाती  है 3) । इस स्थान से  दो किलोमीटर दूर स्थित विष्णु सरोवर के नाम  से  प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है  जिसे  आज  बधाणी ताल के  नाम से  जाना  जाता  है । जिसका जिक्र मैं दूसरी पोस्ट मैं कर रहा हुँ 

बासुदेव मंदिर

देवभूमि उत्तराखंड देवो की भूमि इसलिए कही जाती है कि हर उस देवता के होने साक्षात प्रमाण हैं जिसे यहां होने की बात कही जाती है। हम बात कर रहे हैं हाजारों साल पुराने एक ऐसे मंदिर की जो अपनी दया दृष्टि और शक्तियों के लिए विख्यात है।  जी हां उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के जखोली ब्लॉक अन्तगर्त मा पावन गंगा लस्तर नदी के तट पर भगवान वासुदेव का प्राचीन मंदिर स्थापित है। यह मंदिर 2  नदियों के संगम पर बना है। कहते हैं कि यहाँ नदी तट पर श्रीकृष्ण भगवान ने शिव की आराधना की थी। मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। प्राचीन काल की एक कहानी के मुताबित जब वसुदेव की डोली उत्तराखंड भ्रमण पर थी टिहरी के राजा भवानी शाह अपनी प्रजा की समस्याओं को लेकर बहुत चिंतित थे। टिहरी में काफी समय से बरसात नहीं होने की वजह से फसल बर्बाद हो रही थीइस दौरान उन्होंने कई देवी देवताओं का अनुष्टान कराया लेकिन बारिश नहीं हुई इसके बाद खिन होकर टिहरी के राजा ने अपने नगर में किसी भी देवी देवता की डोली के आने जाने पे प्रतिबंध लगा दिया था। भगवान वासुदेव की डोली टिहरी में पहुंची वहां डोली को अन्दर शहर में ले जाने का आदेश नह