संदेश

मई, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

त्रियुगीनारायण मंदिर उत्तराखंड

चित्र
#क्या आप जानते हैं कि इसी पृथ्वी पर विद्यमान है वह जगह जहां साक्षात #भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था।अधिक जानकारी के लिए आगे पढ़ें........... 👉उत्तराखंड का #त्रियुगीनारायण मंदिर ही वह पवित्र और विशेष पौराणिक मंदिर है। इस मंदिर के अंदर सदियों से अग्नि जल रही है। शिव-पार्वती जी ने इसी पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर विवाह किया था। यह स्थान रुद्रप्रयाग जिले का एक भाग है।👇 👉 #त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में ही कहा जाता है कि यह भगवान शिव जी और माता पार्वती का शुभ विवाह स्थल है।👇 👉मंदिर के अंदर प्रज्वलित अग्नि क ई युगों से जल रही है इसलिए इस स्थल का नाम त्रियुगी हो गया यानी अग्नि जो तीन युगों से जल रही है। 👉त्रियुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी। यहां शिव पार्वती के विवाह में विष्णु ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था। जबकि ब्रह्मा इस विवाह में पुरोहित बने थे। 👉उस समय सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था। विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहम शिला कहा जाता है जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है। इस मंदिर के महात्म्य का वर्णन स्थल पुराण में भी मिलता है। 👉वि

धारी देवी

चित्र
#माँ_धारी_देवी 🙏🙏 #पहाड़ों और #तीर्थ_यात्रियों की #रक्षक -: बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर श्रीनगर से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर कलियासौड़ में अलकनन्दा नदी के किनारे सिद्धपीठ माँ धारी देवी का मंदिर स्थित है। माँ धारी देवी प्राचीन काल से उत्तराखण्ड की रक्षा करती है, सभी तीर्थ स्थानों की रक्षा करती है।   माँ धारी देवी मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है वर्ष 1807 से इसके यहां होने का साक्ष्य मौजूद है, पुजारियों और स्थानीय लोगों का मानना है कि मंदिर इससे भी पुराना है, 1807 से पहले के साक्ष्य गंगा में आई बाढ़ में नष्ट हो गए हैं 1803 से 1814 तक गोरखा सेनापतियों द्वारा मंदिर को किए गए दान अभी भी मौजूद है, बताया जाता है कि ज्योतिलिंग की स्थापना के लिए जोशीमठ जाते समय आदि शंकराचार्य ने श्रीनगर में रात्रि विश्राम किया था इस दौरान अचानक उनकी तबीयत बिगड़ने पर उन्होंने धारी माँ की आराधना की थी, जिससे वे ठीक हो गए थे तभी उन्होंने धारी माँ की स्तुति की थी ।   इस मंदिर में पूजा अर्चना धारी गांव के पंडित कराते हैं  यहां के तीन पंडित भाई (परिवार) चार -चार महीने पूजा कराते हैं, यहां के पुजारी बताते हैं कि द्वा

ओली उत्तराखंड

चित्र
औली, उत्तराखंड में स्थित एक बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन है, जहां देश और विदेश से टूरिस्ट आते हैं. यह हिल स्टेशन बद्रीनाथ के रास्ते में स्थित है.दिल्ली से 504 किमी दूर है उत्तराखंड का खूबसूरत हिल स्टेशन औली, इसे कहते हैं भारत का मिनी स्विट्जरलैंडAuli Hill Station Uttarakhand: औली, उत्तराखंड में स्थित एक बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन है, जहां देश और विदेश से टूरिस्ट आते हैं. यह हिल स्टेशन बद्रीनाथ के रास्ते में स्थित है. यहां एशिया की सबसे लंबी केबल कार है जो कि 4 किमी लंबी है. इस केबल कार में बैठकर पर्यटक औली के अद्भुत प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते हैं और बर्फ से ढकी चोटियों के दृश्य देखते हैं.देवदार और चीड़ के वृक्ष,सेब के बाग इस हिल स्टेशन की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं. दिल्ली से औली की दूरी करीब 504 किलोमीटर है. नैसृगिक प्राकृतिक खूबसूरती के कारण औली हिल स्टेशन को भारत का 'मिनी स्विट्जरलैंड' भी कहते हैं. गढ़वाल क्षेत्र के चमोली जिले में स्थित यह हिल स्टेशन सुमद्र तल से 3,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यहां से टूरिस्ट कई पर्वत श्रृंखलाओं को देख सकते हैं. औली से पर्यटक नंदा देवी पर्व

केदारनाथ की अनसुलझी बातें

चित्र
केदारनाथ मंदिर एक अनसुलझी पहेली  है I केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया था इसके बारे में बहुत कुछ कहा जाता है। पांडवों से लेकर आदि शंकराचार्य तक। आज का विज्ञान बताता है कि केदारनाथ मंदिर शायद 8वीं शताब्दी में बना था। यदि आप ना भी कहते हैं, तो भी यह मंदिर कम से कम 1200 वर्षों से अस्तित्व में है। केदारनाथ की भूमि 21वीं सदी में भी बहुत प्रतिकूल है। एक तरफ 22,000 फीट ऊंची केदारनाथ पहाड़ी, दूसरी तरफ 21,600 फीट ऊंची कराचकुंड और तीसरी तरफ 22,700 फीट ऊंचा भरतकुंड है। इन तीन पर्वतों से होकर बहने वाली पांच नदियां हैं मंदाकिनी, मधुगंगा, चिरगंगा, सरस्वती और स्वरंदरी। इनमें से कुछ इस पुराण में लिखे गए हैं। यह क्षेत्र "मंदाकिनी नदी" का एकमात्र जलसंग्रहण क्षेत्र है। यह मंदिर एक कलाकृति है I कितना बड़ा असम्भव कार्य रहा होगा ऐसी जगह पर कलाकृति जैसा मन्दिर बनाना जहां ठंड के दिन भारी मात्रा में बर्फ हो और बरसात के मौसम में बहुत तेज गति से पानी बहता हो। आज भी आप गाड़ी से उस स्थान तक नही जा सकते I फिर इस मन्दिर को ऐसी जगह क्यों बनाया गया? ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में 1200 साल से भी पहले ऐसा

देवप्रयाग

चित्र
उत्तराखंड के सभी शहरों का स्वयं का एक इतिहास है, इसी क्रम में देवप्रयाग शहर का भी अपना एक अलग और अनोखा इतिहास है। यह शहर पंडितों का स्थान है और ये पंडित बद्रीनाथ धाम से संबंधित होते हैं । देवप्रयाग में गंगोत्री से आने वाली भागीरथी नदी एवं बदरीनाथ धाम से आने वाली अलकनंदा नदी का संगम होता है और देवप्रयाग से यह नदी पवित्र गंगा के नाम से जानी जाती है| अलकनंदा और भागीरथी के संगम पर स्थित यह शहर 472 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह नगर ऋषिकेश बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर स्थित देवप्रयाग तहसील का मुख्यालय है| मान्यतानुसार अलकनंदा नदी के पांच पवित्र संगम तीर्थों में एक देवप्रयाग को ऋषि देव शर्मा के नाम से भी जाना जाता है जिन्होने यहाँ तपस्या करके भगवान के दर्शन किये थे| इस नगर की अलौकिक एवं दैवीय सुन्दरता कई धार्मिक पर्यटकों को आकर्षित करती है| ये भी माना गया है की यहाँ भगवान् राम एवं राजा दशरथ ने तप किया था | अपने मन में भक्ति एवं विश्वास ले कर आये हुए पर्यटकों के दर्शनार्थ यहाँ रघुनाथ जी का दस हज़ार साल पुराना मंदिर स्थित है | संगम से ऊपर पुराने पत्थरों से बने इस मंदिर में एक अनियमित पिरामिड